“कुछ रिश्ते कभी नहीं टूटते – जब पतंग और डोर फिर मिले” 🪁💫

“अदृश्य डोर: जब हम मिले…” (एक अनसुनी कहानी, जैसी 2025 में कभी लिखी न गई हो)
रात का वक्त था। शहर की ऊँची इमारतों के बीच एक छोटी सी बालकनी में वो खड़ी थी—आसमान की तरफ देखते हुए। हाथ में एक पुराना खत था, जिसकी लिखावट धुंधली हो चुकी थी, लेकिन शब्द अब भी उसकी धड़कनों में बसे थे।

“तू मेरी उड़ान, मैं तेरा आसमान…”

वो शब्द अब भी गूंज रहे थे, जैसे हवा में घुल गए हों। उसने एक लंबी सांस ली और आसमान में उड़ती हुई पतंगों को देखा। एक पतंग दूसरी से उलझी, और कुछ ही पलों में नीचे गिर गई। ठीक वैसे ही जैसे वो किसी से उलझी थी—किसी अनदेखी डोर से, जो दिखाई नहीं देती थी, लेकिन महसूस होती थी।

कुछ साल पहले…
अद्वैत और ईरा—दो नाम, जो एक-दूसरे के बिना अधूरे थे। न प्यार था, न कोई रिश्ता, लेकिन फिर भी कुछ था जो शब्दों से परे था। अद्वैत उसकी हंसी में अपनी दुनिया देखता था, और ईरा उसकी आँखों में अपना आसमान।

“ईरा, तू पतंग जैसी है, हवा में उड़ती हुई, बिंदास…”
“और तू?” ईरा हंस पड़ी।
“मैं? मैं डोर, जो तुझे कभी गिरने नहीं देगी।”

लेकिन ज़िन्दगी हर रिश्ते को आजमाती है। ईरा को एक बेहतर नौकरी का ऑफर मिला—दूसरे शहर में। उसने अद्वैत को बताया, उसकी आँखों में चमक थी, लेकिन अद्वैत चुप था।

“तू खुश है?” अद्वैत ने पूछा।
“बहुत! ये मेरी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा मौका है!”
“तो जा, लेकिन याद रखना, डोर हमेशा तुझे थामे रहेगी।”

ईरा हंसकर चली गई। उसे लगा था कि ये सिर्फ एक बात थी, लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीता, उसे एहसास हुआ कि वो कहीं ना कहीं उसी डोर में उलझी रह गई थी।

आज…
बालकनी में खड़ी ईरा सोच रही थी—क्या हम सच में कुछ रिश्तों से कभी अलग हो सकते हैं? उसने फोन उठाया और वही पुराना नंबर डायल किया, जो उसने सालों से नहीं मिलाया था।

ट्रिंग… ट्रिंग…
“हैलो?” अद्वैत की आवाज़ अब भी वैसी ही थी।
“अद्वैत…” उसकी आवाज़ काँप गई।
“ईरा?” दूसरी तरफ सन्नाटा था।
“आज आसमान में बहुत सी पतंगें हैं…” उसने धीरे से कहा।
“हां, लेकिन डोर अब भी मजबूत है।”

उसकी आँखें भर आईं। कभी-कभी हम दूर चले जाते हैं, लेकिन कुछ रिश्ते वक़्त के साथ नहीं टूटते। वे बस इंतज़ार करते हैं—एक सही पल का, एक सही कॉल का, एक सही उड़ान का…

“तू मेरी उड़ान, मैं तेरा आसमान…”

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