“तू मेरी उड़ान, मैं तेरा आसमान”
तुझसे मिलकर मैं पहले जैसा नहीं रहा,
कुछ तो बदला है, कुछ नया सा हुआ है।
जो मैं था कभी, वो अब कहीं खो गया,
तेरी दोस्ती ने मुझे नया बना दिया।
तू मेरी उड़ान है, मैं तेरा आसमान,
तेरी मेरी यारी, जैसे सांस और जान।
तू हंसी है, मैं उसकी गूंज,
तेरी हर खुशी में, मैं तेरा संग।
तू पतंग बनके आसमान में इठलाती रहे,
मैं डोर बनके तुझे संभालता रहूं।
तुझे शायद अंदाज़ा भी नहीं,
तेरा साथ मेरे लिए क्या मायने रखता है।
तू वो पहली किरण है,
जो मेरे अंधेरों को रोशनी में बदल देती है।
जब भी मैं खुद से दूर हुआ,
तेरी बातों ने मुझे वापस बुला लिया।
तू हवा का वो झोंका है,
जिसने मुझसे ही मुझको मिलाया।
जब दुनिया बेरुखी दिखाती है,
तेरी हंसी मुझे सहारा दे जाती है।
इस खुले आसमान में,
तू पतंग, मैं डोर बना रहूं,
हर मोड़ पर, हर घड़ी,
तेरा हाथ थामे खड़ा रहूं।
समझौते
बिछड़ते वक़्त दोनों हँस के बिछड़े,
तो अब आँखों में क्यों बादल भरे हैं?
बिना समझे जो हमने कर लिए थे,
वो समझौते बहुत महंगे पड़े हैं।
मुझे लगता नहीं बच पाऊँगा,
इस हमले में मारा जाऊँगा मैं।
तुम्हारे साथ जो गुज़रे लम्हे,
अब मेरी दहलीज़ पर आकर खड़े हैं।
भुलाने में तुम्हें ये भी आ गया है,
कि हमने ख़ुद को ज़ख़्म बना लिया है।
सुलह की कोई गुंजाइश नहीं है,
हम अपने आप से इतना लड़े हैं।
आकाश छुपे हैं मुझमें कई,
मैं कायनात का ज़रिया हूँ।
मैं दरिया की एक बूँद नहीं,
एक बूँद में पूरा दरिया हूँ।
अगर भटकूँ तो क्यों भटकूँ
ज़मीनी रहगुज़र में?
चलो वो रास्ते ढूँढते हैं,
जो खुलते हैं सितारों में।
मैं एक जंगली पौधा हूँ,
मेरी फ़ितरत है मुरझाना।
मैं मुरझा जाऊँगा रहना पड़ा
गर बंजर ज़मीनों में।
सुनारों की ये बस्ती है,
यहाँ क्या काम है मेरा?
मैं लोहा हूँ, मैं लोहा हूँ,
मुझे ले चलो लुहारों में।
मैं वो राही हूँ
जिसका साया मर गया आबशारों में।
जला लो लाखों कंदीलें,
चढ़ा लो फूल जी भर के,
मगर ज़िंदा नहीं होते
जो सोए हैं मज़ारों में।
मेरी धूनी में जितनी राख है,
गर बेच डालूँ तो गिना जाऊँगा,
मैं भी शहर के जागीरदारों में।
कटोरा लेकर फिरना हमारा शौक़ है,
वरना कई सुल्तान हमारे क़र्ज़दारों में।
कौन तराने गाएगा मेरे बाद?
बस्ती में सन्नाटा होगा मेरे बाद।
कौन रात भर जागेगा उसके साथ?
चाँद बहुत घबराएगा मेरे बाद।
बहुत अलग हैं हम दोनों
बहुत अलग हैं हम दोनों,
वो सफर दिल ही दिल में करती है, मैं दिल के साथ।
सोच और जज़्बात भी उसके,
आग और शहद को एक जैसा मानते हैं,
मैं, दो एक जैसे रंगों में भी फर्क ढूंढ़ लेता हूँ।
वो खुला आसमान तलाशती है,
मैं पैरों तले ज़मीन।
उसे मीठा पसंद है,
मुझे नमकीन।
बहुत अलग हैं हम दोनों,
फिर भी कुछ तो मिलता-जुलता है…
हम दोनों के दिल का झरोखा,
प्यार की दस्तक पर खुलता है।
हमें शाम की चाय साथ पीने में मज़ा आता है,
बहुत अलग हैं हम दोनों,
पर हमें साथ जीने में मज़ा आता है।
तुम अपनी आँखों को हँसना सिखाओ
तुम अपनी आँखों को हँसना सिखाओ,
मेरी आँखों में बादल रहने दो न।
मुबारक हो तुम्हें ये दुनियादारी,
मैं पागल हूँ, तो पागल रहने दो न।
मैं समझा था कि दिल की मुश्किलें हल हो गईं,
पर कल, तुम्हारी याद में फिर आँखें बादल हो गईं।
खींच ले जाती हैं मुझको तेरे ही घर की तरफ,
शहर की ये सारी सड़कें जैसे पागल हो गईं।
इश्क़ दोनों ने किया था, बस फर्क इतना सा है,
मैं अधूरा रह गया, और तुम मुकम्मल हो गईं।
मेरी नींदों में भी परछाइयाँ आई हैं,
बादल के बिस्तर पे लेटा मैं भी हूँ।
तो क्या, जो मेरे नाम कोई रियासत नहीं,
अपनी माँ का राजा बेटा मैं भी हूँ।
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वो एक भटकती खुशबू थी, एक हवा का झोंका, न उसने मुझे रोका, न मैंने उसे बाँधा। कुछ पल मेरी सांसों में ठहरी, और मैं देर तक महकता रहा, उस एहसास को पीकर, मैं खुद में ही खोता रहा।
ये एकतरफा प्यार है मेरा, बस मेरा!
अभी कल ही तो मिली थी वो, एक मोड़ पर, बारिश भी मेरे दिल की तरह बरसी थी रातभर। वो एक अनकहा एहसास है, जो सिर्फ मैं जानता हूँ, बिना छुए भी, उसकी मौजूदगी को महसूस करता हूँ।
मेरा दिल उसके खुमार में डूबा रहता है, ये एकतरफा प्यार है मेरा, बस मेरा!
हर रोज़ उसकी तस्वीर से बातें करता हूँ, उसकी आँखों में छुपे ख्वाबों को पढ़ता हूँ। कागज़ पर उसकी यादें उकेरता हूँ, और उन्हीं लफ्ज़ों में खुद को खो देता हूँ।
मुझे उससे कोई शिकायत नहीं, पर हाँ, ये प्यार एकतरफा ही सही।
मैंने कुछ कहा नहीं, उसने कुछ सुना नहीं, फिर भी मेरी आँखों ने उसके ख्वाब बुने। वो इस सफर में शामिल हो या न हो, पर मेरी तड़प तो अब भी वैसी ही है।
हर शाम किसी मोड़ पर ठहरकर, उसका नाम पुकारता हूँ। हर दिन उसकी राह तकता हूँ, ये जानते हुए भी कि वो नहीं आएगी।
फिर भी, मेरा प्यार तो एकतरफा है!
कभी उदास दिन, कभी गहरी रातें, कभी खुद को उसकी तरफ से खत लिखता हूँ। उसकी यादों में खुद को समेटता हूँ, और हर रोज़ उसी की बाहों में खो जाने का ख्वाब देखता हूँ।
मैं खंडहर हो गया, पर उसकी यादें जिंदा हैं, उसके नाम के पत्थर मेरी बुनियाद में आज भी लगे हैं।
अगर इस दुनिया में उससे मिल भी जाऊँ, तो उलझनें कम नहीं होंगी। मैं उजाले पीता हूँ, पर जानता हूँ, कि कोई बचकर नहीं लौटा वहाँ से, जहाँ मेरी रातें ठहरी हैं।
मैंने उसे जो तावीज़ दिया था, उसी दिन से मेरा दिल जान गया था, कि मेरी हार उसके हाथों में लिखी है।
अब भी बारिश से डर नहीं लगता, पर ये सोचता हूँ, जब छत ही नहीं, तो कहाँ जाऊँगा?
मैंने बहुत रोया उसे पाने के लिए, पर अगर वो तरस खाकर मिल भी जाए, तो वो प्यार नहीं, खैरात होगी।
सबसे हसीन खुशियाँ जिस चेहरे ने दीं, उसी ने सबसे गहरे ज़ख्म भी दिए। अब भी यादें मेरे साथ चलती हैं, और हर रात छत पर टहलती हैं।
तू आज भी मेरी नहीं है, कल भी नहीं थी, पर शायद किस्मत एक दिन बदल जाए।
जब तक तेरी यादें साथ हैं, ये आँसुओं का सफर चलता रहेगा। जैसा ज़माना चाहता है, वैसा लिखना अभी नहीं सीखा, आज भी मुट्ठी में एहसास बाँटता हूँ, और बिखरने से अब भी इनकार करता हूँ।